Monday, July 7, 2008

मरीज पस्त, अंबुमणि मस्त

मेरे पड़ोस में एक सरकारी अधिकारी रहते हैं. कल शाम उनके बच्चे की तबीयत खराब हो गई. पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था. बच्चा कुछ भी खाता तो उल्टी कर देता. इमरजेंसी में सात साल के बच्चे को वो गंगाराम अस्पताल ले गए. प्राथमिक इलाज के बाद रात एक बजे वहां तैनात डॉक्टर ने बच्चे को किसी दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा. पूछने पर डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की हालत ख़राब है और उसे भर्ती कराना होगा, लेकिन गंगाराम अस्पताल में जगह नहीं है. काफी देर तक वो मिन्नतें करते रहे, लेकिन डॉक्टरों ने अपनी लाचारी जता दी. जिसके बाद वो रात दो बजे केंद्रीय दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल आरएमएल में पहुंचे. वहां भी डॉक्टरों ने आनाकानी की. लेकिन बच्चे की हालत देख वो इनकार नहीं कर सके. उन्होंने उसे भर्ती कर लिया.

डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल दिल्ली के वीआईपी इलाके में है. संसद भवन और कनॉट प्लेस के ठीक बगल में. यहां पहुंचने पर बच्चे के पिता को लगा कि सब ठीक हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं था. रात दो बजे से लेकर शाम पांच बजे तक बच्चे के कई टेस्ट हुए. खून की जांच के साथ एक्स रे और अल्ट्रासाउंड भी हुआ. रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये. उन्होंने कहा कि बच्चे को इंटेस्टाइनल रपचर (intestinal rupture) है. उसका तुरंत ऑपरेशन करना होगा और इसके लिए वो या तो कलावती अस्पताल ले जाएं या फिर गंगाराम. ये सुन कर बच्चे के पिता के होश उड़ गए. उन्होंने कहा कि आरएमएल में इलाज नहीं होगा तो फिर कलावती और गंगाराम में इलाज की क्या गारंटी हैं? तब डॉक्टरों ने बताया कि केंद्र सरकार के चंद सबसे बड़े अस्पतालों में से एक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में एक भी पेडियाट्रिक्स सर्जन नहीं है. ये सुन हम सब हैरान रह गए. अगर वीआईपी इलाके में मौजूद आरएमएल का ये हाल है तो इससे स्वास्थ्य सेवा की बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदॉस को उससे क्या? मरीज पस्त हैं और मंत्री जी अपनी राजनीति में मस्त हैं.

मजबूरी में एक बार फिर बच्चे को गंगाराम अस्पताल ले जाना पड़ा. संपर्क निकाला गया और डॉक्टरों से बात की गई और आखिर में बच्चे को आईसीयू में भर्ती कर लिया गया है. अब उसके घरवालों के साथ हम सबकी यही दुआ है कि ऑपरेशन के बाद वो फिर से पहले की तरह उछल-कूद मचाने लगे. शरारतें करने लगे.

2 comments:

ghughutibasuti said...

हमारे देश में बीमार पड़ना बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। एक तो व्यक्ति वैसे ही हैरान परेशान ऊपर से एक हस्पताल से दूसरे की भागदौड़। जो बच जाए वह भाग्यवान, जो न बचे तो........
घुघूती बासूती

V said...

यह हाल तो महानगरों का है, उस देहाती का क्या होगा जो किसी दूर के गाँव में रहता है, इलाज करवाने को वो पैसे नहीं खर्च सकता, और बड़े अधिकारियों के साथ उसका उठना बैठना नहीं है | यह दुर्भाग्य ही है की बीते ६० वर्षों में हम "वैलफेयर स्टेट" के माडल की तरफ बढ़ने के बजाय उससे दूर ही हुए हैं...
अच्छा लगा की कोरपोरेट मीडिया की आंधी में भी पत्रकारों की सामजिक चेतना संघर्ष कर रही है...