Friday, May 30, 2008

क्या हम सड़क पर चलना नहीं जानते?

दफ्तर से लौटते वक्त लगा कि गाड़ी भिड़ जाएगी। ग्रेटर कैलाश से आईटीओ की तरफ बढ़ने पर ओबेरॉय होटल के पास से बायीं तरफ इंडिया गेट के लिए रास्ता निकलता है। मैं इंडिकेटर देते हुए धीरे धीरे उधर मुड़ने लगा। लेकिन तभी एक तेज रफ्तार कार पॉवर हॉर्न बजाते हुए वायें से निकलने लगी। अगर मैंने जोर से ब्रेक नहीं दबाया होता तो हादसा तय था। ये पहली बार नहीं है। दिल्ली की सड़क पर गाड़ी चलाते हुए कुछ अधिक सतर्क रहना पड़ता है। यहां ज्यादातर लोग बेतरतीब ढंग से गाड़ी चलाते हैं। कोई साठ की लेन में तीस की रफ्तार से चलता है तो कोई चालीस की लेन में अस्सी की रफ्तार से। ऑटो और मोटरसाइकिल का तो कोई भरोसा नहीं। आप तेज रफ्तार से आखिरी लेन में गाड़ी चला रहे हों तो अचानक कोई ऑटो या मोटरसाइकिल सामने आ जाएगा। हल्की सी चूक हुई तो आप बुरे फंसे। अब तो कोर्ट ने भी कह दिया है कि जितनी बड़ी गाड़ी उतनी बड़ी जवाबदेही।
कुछ दिन पहले की बात है। बीवी के साथ कनॉट प्लेस से गोल मार्केट जा रहा था। तभी थोड़ी दूर पर एक शख्स हाथ देता हुआ सड़क पार करने लगा। मैंने गाड़ी रोक दी। शख्स सामने से गुजर गया तो मैंने गाड़ी बढ़ा दी। तभी पीछे से आती हुई एक और कार उस शख्स के सामने से दनदनाते हुए निकली। वो थोड़ी देर के लिए हड़बड़ा गया। उसने अपना कदम नहीं रोका होता तो वो कार उसे कुचल देती। मेरी बीवी ने कहा कि कितना बदतमीज था वो गाड़ी वाला। मैं हंसने लगा तो उसके चेहरे पर हैरानी का भाव आ गया। फिर मैंने उसे बताया कि बद्तमीज गाड़ी वाला नहीं बल्कि सड़क पार करने वाला शख्स था। दरअसल वो शख्स जहां सड़क पार कर रहा था उससे महज पचास मीटर दूर रेडलाइट है और जेब्रा क्रॉसिंग भी। उस शख्स को चाहिये था कि वो जेब्रा क्रासिंग पर पहुंच कर सड़क पार करे या फिर सड़क खाली होने का इंतजार करे। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। ऐसे में अगर उसे टक्कर लगती तो भी गलती कार वाले की ही देखी जाती।
ये कुछ उदाहरण भर ही हैं। दिल्ली में सड़क पर गाड़ी चलाना किसी जांबाजी से कम नहीं। यहां हर कदम पर ख़तरा है। कुछ पैदल चलने वाले मदहोश होकर सड़क पार करते हैं तो कुछ लोग गाड़ी मदहोश होकर चलाते हैं। ऐसे में जब कोई नेता या अधिकारी कहता है कि लोगों को सड़क पर चलने का सलीका नहीं तो हम मीडियाकर्मी उसके पीछे हाथ धो कर पड़ जाते हैं। जबकि सच यही है कि दिल्ली में ज्यादातर लोगों को सड़क पर चलने का सलीका नहीं आता।

तारीख - ३० मई, २००८

समय - १२.३५

1 comment:

महेन said...

बंधु यह हाल सिर्फ़ दिल्ली का ही नहीं पूरे भारत का है। इसके कारणों की खोज करने लगे तो 300 पन्नों की किताब तो मैं ही लिख सकता हूँ, जाने experts कितने पन्ने रंग डालें।