Saturday, May 31, 2008

एक शराबी का दर्द (पार्ट वन)

मैंने शराब और सिगरेट छोड़ दी है .... लेकिन पूरे यकीन से नहीं कह सकता कि हमेशा के लिए छोड़ दी है। आखिर क्यों? वजह है मेरे खून में घुल चुकी शराब और सिगरेट। अब भी कहीं से सिगरेट की गंध आती है तो सांस गहरी हो जाती है। दोस्तों को शराब पीते देखता हूं तो मन मचलने लगता है। प्रेस क्लब जाता हूं तो अंदर घुट रहा शराबी चीखता चिल्लाता है कि एक बेहद छोटा ही सही पेग लगा ले। जब जागरूक समरेंद्र मना करता है तो वो शराबी मोल-भाव करने लगता है। कहता है कि दोस्त के पेग से एक सिप लेकर तो देख। भीतर के शराबी और जागरुक शख्स के बीच जोरदार जंग चल रही है। जब तक जागरुक शख्स अंदर के उस शराबी का गला पूरी तरह घोंट नहीं देगा ... मैं दावे से नहीं कह सकता कि मैंने शराब और सिगरेट हमेशा के लिए छोड़ दी है। आज नो टोबैको डे पर मैं एक सीरीज शुरू करने जा रहा हूं। इस सीरीज में मैं सिलसिलेवार ढंग से अपने भोगे हुए यथार्थ को बयां करुंगा। शराब और सिगरेट के जोखिम को बयां करुंगा और जिस दिन एक भी शख़्स को मेरे इस भोगे हुए यथार्थ से शराब और सिगरेट की लत छोड़ने की प्रेरणा मिलेगी मैं खुद को कामयाब मानूंगा।

ब्लॉगर भाई राजेश ने कहा है कि किसी की अपील से कोई शख़्स शराब और सिगरेट की आदत नहीं छोड़ता है। ये बड़ा फ़ैसला तो व्यक्ति तभी लेता है जब भीतर से आवाज़ उठती है। पहली नज़र में बात सही लगती है। लेकिन ये उतनी सही है नहीं। इसे समझने के लिए एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगा। एनडीटीवी का एक कार्यक्रम है सलाम ज़िंदगी। ये बेहतरीन कार्यक्रम हैं और इसमें उन लोगों को सलाम किया जाता है जो अपने कर्मों से खुद की और दूसरों की ज़िंदगी को खूबसूरत बनाते हैं। कुछ समय पहले इसमें अल्कोलिज्म पर एक ऐपिसोड बना। वो एक लाजवाब शो था। मैं सलाम ज़िंदगी का मुरीद हूं। मैंने उसके कई ऐपिसोड देखे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा मुझे वही शो पसंद है। शायद इसलिए की उसमें जो दास्तान दिखाई गई थी, वो मुझे अपनी दास्तान लगी। वो हर शराबी और नशेड़ी को सोचने पर मजबूर करने का दमखम रखता था।

उस शो में मशहूर रंगकर्मी पीयूष मिश्रा भी शामिल हुए। एक कामयाब रंगकर्मी, एक लाजवाब अभिनेता के तौर पर नहीं, बल्कि शराब के शिकार शख्स के तौर पर। उस शो में पीयूष मिश्रा ने बड़ी बुलंद आवाज़ में कबूल किया कि वो शराबी थे। ये कबूल करने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। एक शराबी अपने इस चेहरे को छुपाता फिरता है। खुद से ... मां-बाप से... भाई-बहनों से ... बीवी बच्चों से... और उन तमाम लोगों से जिन्हें वो बहुत चाहता है। ऐसे में कैमरे पर शराबी होने की बात कबूल करने पर कई जोखिम होते हैं। ऐसा करने से एक झटके में लाखों करोड़ो लोग आपके उसे चेहरे से रू-ब-रू हो जाते हैं, जिसे दिन के उजाले में आप खुद देखने से बचते हों। लेकिन पीयूष ने ऐसा किया तो वो साहस भी उन्हें घर से ही मिला। पीयूष ने जब शराब की लत छोड़ी तो घरवालों ने कहा कि तुम नशे के ख़ौफ़नाक चेहरे और उसे छोड़ने के बाद आज़ादी के अहसास को पूरी दुनिया में बयां करो। ये खुल कर कहो कि तुम आज़ाद हो। पीयूष ने कहना शुरू किया और यकीन मानिये मेरे जैसे ना जाने कितने लोगों को नशे की बुरी लत से छुटकारा पाने का बल मिला।

जब मैंने सिगरेट और शराब पीना शुरू किया था, तब मुझे इसके ख़तरों का ज्ञान था। मैं साइंस का छात्र रहा हूं। पढ़ाई में कभी बेहतरीन नहीं रहा, लेकिन इतना जरूर जानता था कि सिगरेट होंठ पर रखते ही आप कश लगाएं ना लगाएं धुआं फेफड़ों तक पहुंच ही जाता है। रसायनिक क्रिया के जरिये निकोटीन जिस्म के भीतर ऑक्सीजन में घुल जाता है। तो हम लोग तो सिगरेट के लंबे लंबे कश खींचते थे। शराब पीते वक़्त ये कश और भी लंबे हो जाते। जितना ज्यादा नशा, सिगरेट का उतना ही लंबा कश। ऐसा करने में मजा बहुत आता था लेकिन इस मजे का अहसास सिर्फ एक दो पेग तक ही रहता है॥ उसके बाद तो नशा इतना हावी हो जाता है कि स्मृतियों में कोई भी अहसास शेष नहीं बचता।

जारी है ...

तारीख - ३१-०५-२००८

समय - २०.५५

2 comments:

Rajesh Roshan said...

समरेंद्र जी जब आप को कोई काम करना हो टू उसे लिखे या फ़िर उसे लोगो को बताये की मैं यह करना चाहता हू. आप अपने आप को उस काम के थोड़े करीब पाएंगे. सलाम जिन्दगी का वो प्रोग्राम आपको इसलिए अच्छा लगा क्योंकि आपके अन्दर उस समय एक द्वंद चल रहा था की मुझे भी शराब छोड़ना है.... शायद आप समझ रहे होंगे की चीजे कैसे काम करती हैं ....

समरेंद्र said...

राजेश जी, आपने एकदम सही बात कही। यही मैं बताना चाह रहा हूं। हम लोगों में बहुत से ऐसे हैं, जिनके जेहन में किसी ना किसी चीज को लेकर द्वंद चलता रहता है। कोई फ़ैसला लेना चाहते हैं। इच्छा काफी प्रबल होती है। लेकिन साहस नहीं जुटा पाते। उस परिस्थिति में जब कोई शख्स आकर कहता है कि अरे जब मैं ये काम कर सकता हूं, तो तुम क्यों नहीं। तुम्हारी स्थिति तो मुझसे बेहतर है या फिर तुम्हें उस फैसले की मुझसे ज्यादा जरूरत है, तो हौसला बढ़ता है। एक नई ताकत पैदा होती है। यही वजह है कि मैंने आपसे कहा था कि फर्क पड़ता है। हम और आप भले ही अपनी दुनिया में मगन ये कह दें कि कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन सच ये है कि इस दुनिया में किसी कब और कौन सी बात प्रेरित कर जाए, कहा नहीं जा सकता।