मेरी टीम मैच हार गई। दिल्ली डेयरडेविल्स पर मैंने काफी दांव लगाया था। रुपये पैसे का नहीं बल्कि जुबानी दांव। ऑफिस और घर पर जो कोई मुझते पूछता की कौन सी टीम खिताब जीतेगी मेरे मुंह से दिल्ली का नाम निकल जाता। इसकी दो बड़ी वजहें थी। पहली वजह कि मैं दिल्ली में रह रहा हूं और मेरे गांव से बाकी टूसरे शहरों की टीमों की तुलना में दिल्ली नजदीक भी है। दूसरी वजह कि सचिन तेंदुलकर के बाद वीरेंद्र सहवाग को ही बतौर बल्लेबाज मैं सबसे अधिक पसंद करता हूं। मुझे ये हमेशा लगता रहा कि धोनी को कप्तान बना कर सहवाग के साथ ज्यादती की गई है। मैं यहा साफ कर दूं कि ये बिल्कुल मेरी निजी राय है और इससे किसी को सहमत होने की जरूरत नहीं है। मगर अब मेरी राय बिल्कुल बदल गई है।
दरअसल किसी भी टीम की जीत में कप्तान की बड़ी भूमिका होती है। टीम आंकड़ों के लिहाज से कितनी ही बेहतर क्यों ना हो, अगर कप्तान कमजोर है तो टीम कामयाब नहीं हो सकती। पूरे टूर्नामेंट में सहवाग ने ये बार बार साबित किया है कि वो अच्छे कप्तान नहीं हो सकते। बल्कि और साफ शब्दों में कहें तो वो कप्तान बनने के लायक ही नहीं। आज के मैच को ही लें। मुकाबला राजस्थान रॉयल्स के साथ था। वैसे तो रॉयल्स हर मोर्चे पर कामयाब रहे हैं लेकिन उनकी गेंदबाजी का कोई जवाब नहीं। टूर्नामेंट के दो सबसे कामयाब गेंदबाज सोहेल तनवीर और शेन वॉर्न उसी टीम के हैं। शेन वॉटसन भी गजब फॉर्म में हैं। मुनाफ पटेल भले ही उतना कामयाब नहीं हुए, लेकिन उन्होंने किफायती गेंदबाजी जरूर की है। गेंजबाजी के लिहाज के ऐसी मजबूत टीम के स्कोर का पीछा करना किसी के लिए भी आसान नहीं। ये वो टीम है जो छोटे से छोटे स्कोर पर भी जीत हासिल करने का दमखम रखती है। ऐसे में सहवाग को टॉस जीतने के बाद बल्लेबाजी का फैसला लेना चाहिये था। लेकिन न जाने क्या सोच कर उन्होंने गेंदबाजी चुनी। नतीजा सबके सामने है। रॉयल्स ने १९३ का लक्ष्य दिया जबाव में दिल्ली की टीम ८७ रन पर लुढ़क गई। कप्तान वीरेंद्र सहवाग और ओपनर गौतम गंभीर समेत सारे खिलाड़ी अच्छी गेंदबाजी और दबाव में टूट कर बिखऱ गए।
इससे पहले १७ मई को दिल्ली का मुकाबला पंजाब की टीम से हुआ। मैच पर बारिश का साया था. दिल्ली ने पहले बल्लेबाजी करते हुए ११ ओवर में ११८ रन बनाए। पंजाब की टीम पीछा करने के लिए मैदान में उतरी। दिल्ली को चाहिये था कि किसी भी वक्त पंजाब के रन रेट को अपने रन रेट से आगे ना निकलने दे। उस दिन सहवाग पांच गेंदबाज के साथ मैदान पर उतरे थे। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन ना जाने सहवाग को क्या सूझा पांचवा ओवर वो खुद करने लगे। उस ओवर में पंजाब ने २२ रन ठोक दिये। सारा लय बिगड़ गया। आठ ओवर बाद जब मैच रोका गया तब पंजाब का स्कोर ९४ रन था और वो रन रेट के आधार पर छह रन से मैच जीत गया। हार की वजह सहवाग का फैसला।
आठ मई को चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ का मैच भी सभी को याद होगा। गंभीर के शानदार ८० रन की बदौलत दिल्ली ने चेन्नई को १८८ रन का लक्ष्य दिया। उस मैच में सहवाग चार गेंदबाज के साथ मैदान पर उतरे थे। क्या सोच कर ये कोई नहीं जानता। अगर बीस ओवर के मुकाबले में भी बल्लेबाजों पर भरोसा करते हुए पांच गेंदबाज के साथ कोई टीम मैदान पर नहीं उतर सकती तो उसे खेलने का कोई हक नहीं। सहवाग ने यही गलती की। मजबूरी में चार ओवर उन्हें और शोएब मलिक को करने पड़े। उस चार ओवर में दोनों ने मिल कर ५८ रन दिये। इन ५८ रनों में भी सहवाग की हिस्सेदारी ३० की थी। नतीजा आखिरी गेंद पर चेन्नई जीत गया।
साफ है कि दिल्ली की टीम एक बेहद मजबूत टीम थी। लेकिन सिर्फ सहवाग के गलत फैसलों का खामियाजा पूरी टीम चुका रही है और एक समर्थक होने के नाते हार का बोझ उठाए मैं दफ्तर के लिए निकल रहा हूं।
Friday, May 30, 2008
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3 comments:
भईया हमने भी लैब से बंक मारकर मैच देखा और दुखी हुये । हमने तो मन में सोचा था कि १०० बन गये तो समझेंगे कि मैच जीत गये । लेकिन किस्मत १०० भी नसीब न हुये ।
अन्तिम पंक्ति पढ़ कर हँस रहा हू.
दांव तो भाई हमने भी बहुत लगाया था मगर वीरू ने सारा रायता फैला दिया. सुकरात ने कहा था: "किसी गधे के नेतृत्व में शेरों की टीम किसी शेर के नेतृत्व में खेल रही गधों की टीम से भी हार सकती है" और बाबू साहब यहां तो मुकाबला शेन वार्न से था.
और इस वक्त जब यह टिप्पणी कर रहा हूं पंजाब की टीम भी अपनी भद्द पिटा चुकी है. शुक्र है पंजाब पर कोई दांव नहीं लगाया था.
आप से सांत्वना है भाई!
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