Sunday, June 1, 2008

छू कर गुजरी मौत...

इसे ... एक शराबी का दर्द (पार्ट वन) ... http://dreamndesire.blogspot.com/2008/05/blog-post_9200.html
के बाद पढ़ा जाए

नशा कितना ख़तरनाक है इसे समझने के लिए पहले नशे के चरम मुकाम में नशेड़ी की हालत को समझना होगा। शराब को पचाने की ताकत हर किसी में अलग-अलग होती है। आमतौर पर चार पेग के बाद जिस्म पर दिमाग का नियंत्रण ख़त्म होने लगता है। कुछ साहसी लोग छह पेग तक पचा लेते हैं। लेकिन उसके बाद उन्हें भी दिक्कत होने लगती है। वैसे साहसी से साहसी शख्स भी रोज छह-सात पेग पीयेगा तो उसका शरीर उसे जल्दी ही धोखा दे देगा। जब शरीर पर दिमाग का नियत्रण खत्म होने लगता है तो सबसे पहले कदम लड़खड़ाते हैं। फिर जुबां और उसके बाद पलके बंद होने लगती हैं। फिर वो मुकाम आता है जब आप भले ही आंखे खोले रखें, लेकिन होश खो चुके होते हैं।
अक्सर ख़बर आती है कि तेज रफ्तार कार ने लोगों को रौंद दिया या फिर कोई तेज रफ्तार कार किसी नाले या नहर में गिर गई। ऐसे हादसे उसी हालत की देन हैं। तब एक झटके में ये शराब कई जिंदगियां तबाह कर देती है और जो बच जाते हादसे की खौफनाक यादें उनकी हमेशा पीछा करती हैं।

मैं खुशकिस्मत रहा कि मेरे साथ ऐसा कोई ख़तरनाक हादसा नहीं हुआ। हादसा हुआ और पैसे का नुकसान भी हुआ लेकिन जान का कोई नुकसान नहीं हुआ। शायद ऊपर वाला मेहरबान था। मुझे याद है कि पिछले साल जून का ही महीना था। फिल्म सिटी में हम दोस्तों ने कारोबार (कार में बार) किया और रात एक बजे तक पार्टी चलती रही। उसके बाद संदीप दा घर चले गए और मैं और अभि अपनी-अपनी गाड़ी में खाने के लिए दरियागंज निकल पड़े। मैंने गाड़ी पहले स्टार्ट की और आगे बढ़ गया। अभी इंडिया टीवी की इमारत से बायें की तरफ मुड़ा ही था कि मोबाइल बजने लगा। लखनऊ से आशीष ने फोन किया था। नशे में चूर पहले से था, फोन उठाने के चक्कर में कार पर से नियंत्रण गड़बड़ाया और पैर से ब्रेक की जगह एक्सलेटर दब गया। फिर जोरदार आवाज हुई और लगा कि नरक का टिकट कट गया। टिकट कट भी गया होता अगर सीट बेल्ट नहीं होती। स्टेयरिंग सीने को चूर करता और माथा शीशे में लगता फिर जीवन लीला खत्म। अगर बचते तो एक दर्द लिये। फिर मैं लड़खड़ाते हुए गाड़ी से उतरा, इस बीच पार्टनर अभि. की गाड़ी भी वहां पहुंच गई। हम दोनों ने कार का मुआयना किया। टक्कर जोरदार थी। गाड़ी स्टार्ट तो हो रही थी लेकिन उसे मोड़ने में काफी दिक्कत हो रही थी। गौर से देखा तो अगले पहिये में दरवाजा धंस गया था। किसी तरह उसे धकेल कर इंडिया टीवी के सामने पार्किंग में खड़ा किया और एक दोस्त का हवाला देकर गार्ड को गाड़ी का ध्यान रखने को कहा। और वहां से आगे बढ़ गए। खाने की इच्छा मर चुकी थीं। फिर अभि. ने मुझे घर ड्रॉप किया और वो जब तक वापस घर नहीं पहुंच गया मैं बेचैन रहा।

अगले दिन होश आने पर मैंने बार बार शराब छोड़ने की कसम खाई। लेकिन वो कसम अधूरी रह गई। शराब बदस्तूर जारी रही। बल्कि कुछ वाकयों पर उससे भी ज्यादा हो गई। रात के एक बजे तक शराब और उसके बाद दो-दो, तीन-तीन बजे तक कभी खाने के नाम पर तो कभी सिगरेट के नाम या फिर कभी और अधिक शराब पीने के नाम पर इधर उधर भागना। फिर अगले दिन वही पछतावा और शराब छोड़ने की वही पुरानी कसम। एक अजीब का जाल, जिसमें उलझ कर जिंदगी दम तोड़ रही थी।

((ये सिर्फ एक हादसा था। ऐसे कई हादसे और उनसे मिले सबक शेष हैं ... कुछ अपने ... कुछ दूसरों के।))
तारीख – ०१-०६-०८
समय – ००.४०

2 comments:

Rajesh Roshan said...

अच्छा है. आप अपनी आप बीती सुनते रहिये शायद लोगो को सीख मिल जाए. क्या पता किसको कौन सी बात पसंद आ जाए!!!

Neeraj Rohilla said...

आप अपने अनुभव लिखते रहें, बहुतों की आँखे खुलेंगी | मैंने भी आपकी आज की पोस्ट से कुछ प्रेरणा ली है |

बहुत आभार इसे लिखने के लिए |