Monday, June 2, 2008

एक शराबी की कसम

((छू कर गुजरी मौत के आगे का हिस्सा)) ....

मुंबई का अक्सा बीच. पश्चिमी मलाड के छोर पर मौजूद ये बीच बेहद हसीन है. एक तरफ दूर दूर तक रेत, दूसरी तरफ काले चट्टानों की घटती-बढ़ती लंबी कतार. उन चट्टानों पर बैठे समंदर को निहारते रहने पर वक़्त का अहसास ख़त्म हो जाता है. शाम के समय तो नज़र समंदर से हटती ही नहीं. लहरों में सूरज की लालिमा घुल जाती है. मानो धरती का सारा सोना पिघला कर समंदर में उड़ेल दिया गया हो. सूरज जितना समंदर में समाता है, नीला पानी उतना ही सुनहरा हो जाता है. उस सुनहरे पानी में सुर्ख लाल सूरज को डूबते देखने पर मस्तिक में सिवाए उस पल के कोई और विचार नहीं कौंधता. दिल और दिमाग में मची उथल-पुथल थम जाती है. सिर्फ और सिर्फ वही अदभुत नज़ारा ज़िंदा रहता है।

उन दिनों मुझे देर तक सोने की आदत थी. इसलिए किसी भी सुबह मैं अक्सा बीच पर नहीं पहुंच सका. लेकिन वहां मैंने न जाने कितनी शामें बिताई हैं. मैं और मेरा दोस्त भानु और कभी कभी उसके कुछ फिल्मी दोस्त. भानु और मैं कॉलेज के जमाने के दोस्त थे. १९९६ से. तब भानु जिस थियेटर ग्रुप में कई साल से जुड़ा था, वहां मैंने जाना शुरू किया था. साल भर बाद भी वो थियेटर से जुड़ा रहा और मैंने पत्रकारिता का दामन थाम लिया. फिर मैं नौकर बन गया और कभी कहीं तो कभी कहीं नौकरी करने लगा और वो अभिनय की दुनिया में पहचान बनाने के लिए मुंबई चला गया. भानु के बारे में कभी विस्तार से लिखूंगा. फिलहाल बात उस हसीन शाम की जिसमें ख़तरनाक नाटकीय मोड़ आना बाकी था।

ये बात जनवरी या फरवरी २००४ के किसी दिन की है. मौसम काफी सुहावना था. मैं और भानु उस दिन भी चिप्स, भुजिया, सिगरेट और बीयर की बोलतें लेकर दोपहर बाद अक्सा बीच पहुंच गए. समंदर का पानी काफी दूर था. हम लोग किनारे से करीब डेढ़ सौ मीटर दूर मौजूद चट्टान के बड़े टीले पर बैठ गए. तब उस ऐतिहासिक चट्टान के इर्द गिर्द हथेली भर पानी रहा होगा. भानु ने हर बार की तरह उस दिन भी कहा पार्टनर ये ऐतिहासिक चट्टान है... ये कई फिल्मों की शूटिंग देख चुका है... एक दिन ये मेरी फिल्म की शूटिंग भी देखेगा... फिर बीयर की बोतल खुली और कभी न ख़त्म होने वाले किस्से शुरू हो गये।

भानु कई साल पहले मुंबई चला आया था और फिल्मी दुनिया में अपनी हिस्सेदारी के लिए संघर्ष कर रहा था. इसलिए उसके पास किस्सों की कोई कमी नहीं थी. कौन निर्देशक कितना महान है? कौन से सितारे का किससे चक्कर चल रह रहा है? किस हीरो ने फीस के तौर पर किस हीरोइन की फरमाइश रखी? बॉलीवुड का गे और लेस्बियन क्लब? वगैरह वगैरह ... एक से बढ़ कर एक किस्से और उन्हें परोसने का बेहतरीन अंदाज. भानु के पास फिल्मी दुनिया के चटपटे किस्से तो मेरे पास मीडिया जगत के. दिल्ली और मुंबई दो महानगरों के पत्रकारों के किस्से।

उन्हीं किस्सों के बीच धीरे धीरे सूरज आसमान से उतर कर समंदर की लहरों में डूब गया. तब तक हम दोनों दो-दो बोतल बीयर डकार चुके थे और नशा हल्की लाल तरंगे बन कर आंखों में उतर गया था. सूरज के डूबने के साथ ही उजाले पर अंधेरा तेजी से हावी होने लगा. थोड़ी देर बाद हम दोनों ने घर लौटने का फ़ैसला किया. सामान समेट हम खड़े ही हुए थे कि भानु चिल्ला पड़ा – अरे बाप रे! ये क्या हो गया? हमें चारों तरफ से पानी ने घेर लिया था. सूरज को निगलता हुआ समंदर कब ऊपर चढ़ आया हमें पता ही नहीं चला. हम दोनों अब समंदर में करीब पचास-साठ मीटर अंदर एक ऊंचे टीले पर फंस गए थे. अनहोनी की आशंका से दिल कांप उठा और सारा नशा हवा हो गया।

हम दोनों ने चारों तरफ नज़रें घुमाईं. लेकिन किनारे पर चहल-पहल की जगह सन्नाटा पसरा था. लोग सुहानी शाम का लुत्फ उठा कर लौट चुके थे. किसी मदद की आस बेमानी थी. हम दोनों को ये अंदाजा भी हो चुका था कि अगर हमने तुरंत बाहर निकलने की कोशिश नहीं की तो बचने की गुंजाइश भी घटती जाएगी. तेजी से ऊपर उठता समंदर सूरज की तरह हमें भी लील लेगा. डरते हुए ही सही पानी की गहराई नापने के लिए मैंने टीले से नीचे उतरने का फैसला किया. भानु को अपना हाथ पकड़ाया और धीरे धीरे नीचे उतर गया. पानी मेरी छाती तक था. मैं बुरी तरह घबरा गया।

संसार में सुंदर दिखने वाली हर रचना भीतर से भी सुंदर हो ये जरूरी नहीं. अक्सा बीच की हक़ीक़त भी कुछ ऐसी ही है. मुंबई में उसे किलर बीच भी कहते हैं. अक्सा बीच की तरफ जैसे जैसे आप आगे बढ़ेंगे .. आपको सावधान करते हुए बोर्ड नज़र आएंगे. हर बोर्ड में प्रशासन की तरफ से पानी में नहीं उतरने की अपील की गई है. इस बीच पर जाती हुई लहर के साथ जमीन नीचे धंस जाती है और वहां खड़ा शख्स समंदर में समा जाता है. हर साल अक्सा बीच पर प्रशासन की चेतावनी को नज़रअंदाज करने वाले कई लोगों को लहरें उठा ले जाती हैं और पीछे छोड़ जाती हैं दर्द की ऐसी लकीरें जो मिटाए नहीं मिटतीं।

पानी में उतरने के बाद मैं हर वक्त उन्हीं हादसों के बारे में सोच रहा था. फिर मैंने भानु से कहा मेरा हाथ पकड़े हुए तुम थोड़ी दूर पर पानी में उतरो. हम एक के बाद कदम आगे बढ़ाएंगे ताकि अगर कोई जमीन में धंसा तो दूसरा उसे थामने की कोशिश कर सके. भानु पांच फुट छह इंच का है और मैं छह फुट का. भानु नीचे उतरा तो उसकी गर्दन तक पानी था. हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ.... जैसे भगवान से कह रहे हो कि आज जान बख्श दो... आगे बीयर को कभी हाथ नहीं लगाएंगे...

फिर हौसला जुटाकर एक एक कदम आगे बढ़ाते हुए धीरे धीरे किनारे की ओर चल पड़े... हर कदम पर जब रेत हल्की सी खिसकती तो डर बढ़ जाता. लेकिन हर कदम के साथ भरोसा भी बढ़ रहा था. तीन-चार मिनट के भीतर हम दोनों काफी आगे चले आए और अब घुटनों से नीचे तक ही पानी शेष था. फिर एक दो तीन गिन कर हम किनारे की तरफ दौड़ पड़े. दोनों काफी देर तक खुशी में चीखते चिल्लाते रहे ... ठहाका लगाते रहे...

लेकिन चंद मिनटों के भीतर मन के कई भाव बदल गए... पानी से घिरे होने पर बीयर पीने को लेकर पछतावा पैदा हुआ था ... समंदर से बाहर आने पर वो पछतावा मिट गया ... डर की जगह अब एक रोमांचक याद ने ले ली।

इस वाकये के बाद हमने राजकपूर की तरह एक कसम खाई .. आगे से जब भी अक्सा बीच आएंगे... किनारे पर रह कर ही डूबते सूरज का लुत्फ उठाएंगे... कमरे पर पहुंचने तक इसी कसम को बार बार दोहराते रहे और फिर फ्रिज से बीयर की एक–एक बोतल और निकाल कर जान बचने का जश्न मनाने लगे...

तारीख – ०२-०६-२००८
दिन – सोमवार
समय – ०२.१५
जगह – दिल्ली

3 comments:

Rajesh Roshan said...

साहित्यिक रचना की तरह लिखा है आपने. लेकिन उफ्फ कहने का जी चाह रहा है. लेख का लेकर नही बल्कि आप जो कर गए उसके लिए.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहूत सुन्दर

पीयूष पाण्डे said...

जान बचाकर मुंबई से आया मेरा दोस्त..
दोस्त को सलाम करो..
बहुत बढ़िया...
किस्सा धड़कनें बढ़ाने वाला है, लिखा भी दिलचस्प अंदाज़ में है..
बहुत खूब