Tuesday, June 10, 2008

अजमेर जाने पर पुष्कर जरूर जाना

अजेमर में ख़्वाजा से आशीर्वाद लेने के बाद मैं और अभिषेक पुष्कर की ओर चल पड़े। अजमेर से पुष्कर पहुंचने में आधे घंटे और आठ रुपये लगते हैं। बस अड्डे से हर पंद्रह मिनट पर बस खुलती है. आमतौर पर बस खाली रहती है और आपको बैठने की जगह मिल जाएगी. हम दोनों को भी कोई दिक्कत नहीं हुई. हम दोनों टिकट कटा कर बस में सवार हुए और थोड़ी देर बाद बस खुल गई. अरावली की पहाड़ियों से होकर गुजरता ये रास्ता काफी हसीन है. जैसे जैसे बस चढ़ाई चढ़ती है, खिड़की से अजमेर की खूबसूरती नज़र आने लगती है. चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा अजमेर काफी सुंदर है. बीच में एक बड़ी झील है और ऊंचाई से वो बेहद आकर्षक लगती है. इन्हीं दृश्यों का लुत्फ उठाते हुए हम शाम छह बजे के करीब पुष्कर पहुंच गए. वहां पर हमारे मित्र दिनेश पाराशर पहले से ही इंतजार कर रहे थे. दिनेश पेशे से पत्रकार हैं लेकिन संगीत के उपासक भी हैं. पत्रकारिता से समय मिलने पर बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाते हैं. उनकी अपनी मंडली है और वो मंडली बेहतरीन है.

पुष्कर ब्रम्हा की धरती है। मान्यता है कि ब्रम्हा का हंस चोंच में कमल दबाए उड़ रहा था. उसकी चोंच से कमल यहीं गिर गया. इसलिए इस जगह का नाम पड़ा पुष्कर और यहां ब्रम्हा ने आकर महायज्ञ किया. पुष्कर ब्रम्हा का तीर्थ है, लेकिन यहां ब्रम्हा के मूर्तरूप की पूजा नहीं होती है बल्कि ब्रम्ह सरोवर की पूजा होती है ... पुष्कर की पूजा होती है. यहां पहुंचने पर कोई भी श्रद्धालु मंदिर में यज्ञ नहीं करता बल्कि ब्रम्ह सरोवर के किनारे यज्ञ करता है।

ब्रम्ह सरोवर के चारों ओर ५२ घाट हैं और हर घाट पर मंदिर हैं. चारों तरफ से अरावली का घेरा और उसके ठीक बीच में ब्रम्ह सरोवर ... सुबह और शाम इस जगह की सुंदरता मन मोह लेती है. पुष्कर की एक और खासियत है. यहां गुलाब की खेती होती है. सुर्ख लाल गुलाब की खेती. ये गुलाब हमारी संस्कृति की पहचान भी हैं. उगते पुष्कर में हैं और चढ़ाए जाते हैं अजमेर में ख़्वाजा की दरगाह पर. गुलाब की खुशबू पुष्कर की खूबसूरती को और बढ़ा देती है. शायद यही वजह है कि अगस्त सितंबर में बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी यहां जुटने लगते हैं और मार्च तक उनका आना-जाना लगा रहता है.

मैं और अभिषेक भी दिनेश के साथ होटल पहुंचे। नहा धो कर सात बजे मैं और अभिषेक ब्रम्ह सरोवर का दर्शन करने चल दिये, जबकि दिनेश होटल से ही सटे अपने संगीत स्कूल में शिष्यों को रियाज कराने लगे। ब्रम्ह सरोवर पर हम करीब सवा घंटा रहे. एक दिन पहले वहां जोरदार बारिश हुई और पहाड़ों से मिट्टी को साथ लिए पानी सरोवर में आ गया, इसलिए ये सरोवर भरा पूरा लग रहा था. यहां सरोवर में पैर डाले घाट पर बैठने का सुख ही अलग है. ये कुछ कुछ काशी की याद दिलाता है. सरोवर के दर्शन के बाद हम भगवान ब्रम्हा के मंदिर गए और उनका आशीर्वाद लिया.

रात नौ बजे हम दिनेश के संगीत स्कूल पहुंचे. वो और उनकी मंडली रियाज में जुटी थी. भजन कीर्तन जारी था. मैंने और अभिषेक ने इस संगीत साधना में रुकावट डालना ठीक नहीं समझा और चुपचाप कमरे के बाहर मौजूद कुर्सियों पर बैठ गए. हमें देख दिनेश बीच बीच में राग का ब्योरा देते जाते और गाते जाते. दिनेश को देख कर यही लगा कि हमसे काफी बेहतर है उनका जीवन. कम से कम वो अपने हिसाब से जी रहे हैं. हम लोग तो महानगर में फंस कर रह गए हैं. हमारी ज़िंदगी पर हमसे ज़्यादा दफ़्तर का नियंत्रण है. अपने खाते की छुट्टी लेने से पहले सोचना पड़ता है. सोचो तो तनाव और बिना सोचे छुट्टी ले लेने पर भी तनाव. ऐसा नहीं कि दिनेश इस तनाव से पूरी तरह मुक्त हैं, लेकिन इतना तय है कि उनकी स्थिति हमसे बेहतर जरूर है. करीब एक घंटे बाद दिनेश ने रियाज पूरा किया और हम दोनों ने तालियां बजा कर उनका सम्मान किया.

अब रात के दस बज चुके थे और भूख काफी तेज लगी थी. हम लोग होटल की छत पर बने रेस्तरां में खाने पहुंचे. वहां से ब्रम्ह सरोवर का दिव्य रूप दिखाई दिया. सभी ५२ घाटों पर रोशनी और सरोवर में उस रोशनी की हल्की छाया ... ऊंचाई से देखने पर सबकुछ अदभुत लग रहा था. फिर हमारा ध्यान होटल के पीछे की दो पहाड़ियों ने खींचा. उन दोनों पहाड़ियों पर रोशनी दिखाई दे रही थी. हमने दिनेश से पूछा कि वहां क्या है? दिनेश ने बताया कि एक तरफ देवी सावित्री का मंदिर है और दूसरी तरफ पाप मोचनी माता का मंदिर है. हमने वहां जाने की इच्छा जाहिर की, लेकिन दिनेश ने बताया कि इसके लिए एक दिन निकालना होगा। दोनों पुष्कर के दो छोर पर हैं और हर मंदिर के दर्शन में आधा दिन लग जाएगा. ये सुन कर हमने देवी दर्शन का इरादा छोड़ दिया. इतना जरूर तय हुआ कि अगली बार जब भी पुष्कर आएंगे, वहां भी जरूर चलेंगे.

तारीख – १० जून, २००८
समय – ०९.००
दिन – मंगलवार
जगह - दिल्ली

6 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

मित्र अच्‍छा यात्रा वर्णन प्रस्‍तुत किया है, हम तो पढ़कर ही दर्शन कर लिये। कभी जाने का कार्यक्रम बना तो हम जरूर वहॉं जायेगे।

Rajesh Roshan said...

बहुत ही रोचक और उपयोगी जानकारी वाला पोस्ट...

सुझाव: इस पोस्ट में बाकि दोनों पिछली पोस्ट के लिंक दे दे.
चित्र देते तो हम पाठको को और भी मजा आता. अगर हो तो अपलोड कर दे.

एक बार पुनः बेहतरीन पोस्ट

mamta said...

विवरण पढ़कर बहुत कुछ याद आ गया.
सरोवर मे मछलियों को दाना खिलाया या नही।

Udan Tashtari said...

बहुत रोचक यात्रा वृतांत. मन में पुष्कर देखने की इच्छा प्रबल हो गई.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत बढिया यात्रा वृताँत -
पुष्कर मेले के बारे मेँ भी बतायेँ ..
- लावण्या

sanjay patel said...

समरेंद्र भाई;
पुष्कर के कुछ चित्रों की तलब भी थी.